बाल मुकुंद जोशी
सीकर: “ही-मैन” धर्मेंद्र सिर्फ शानदार कलाकार ही नहीं, बल्कि बेहद भावुक इंसान भी थे। राजनीति की कुटिल चालों से वह वर्षों तक लगभग अनभिज्ञ रहे। बीकानेर से सांसद बनने के बावजूद, सत्ता की उठा–पटक उन्हें कभी रास नहीं आई।
फिल्मों की तरह उनका राजनीतिक सफर भी दिलचस्प मोड़ों से भरा रहा। 1984 में, जब पंजाब आतंकवाद की आग में झुलस रहा था, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता डॉ. बलराम जाखड़ के समर्थन में वे पहली बार सीकर आए। रामलीला मैदान में हुई जनसभा में विशाल जनसैलाब उमड़ पड़ा—लोग धर्मेंद्र को देखने के लिए ही उतावले थे। मंच पर उन्होंने अपने फिल्मी अंदाज में ही जाखड़ के पक्ष में वोट की अपील की, और सीकर ने भी उन्हें निराश नहीं किया—जाखड़ भारी बहुमत से विजयी हुए।
मज़े की बात यह है कि लगभग दो दशक बाद वही धर्मेंद्र, जिन्होंने कभी जाखड़ के लिए वोट मांगे थे, सीकर में भाजपा प्रत्याशी सुभाष महरिया के समर्थन में सभा करने पहुंचे—जाखड़ के खिलाफ!
धर्मेंद्र के इन राजनीतिक “रोल बदलने” वाले किस्से आज भी बड़े चाव से याद किए जाते हैं—बिल्कुल उनकी फिल्मों की तरह, अप्रत्याशित, नाटकीय और रोचक।