बाल मुकुंद जोशी
राजस्थान की राजनीति में कभी सहयोगी रहे किरोड़ी लाल मीणा और हनुमान बेनीवाल अब आमने-सामने हैं. कभी मंच साझा करने वाले, किसानों-युवाओं की आवाज़ बनने वाले ये दोनों नेता अब एक-दूसरे की पोल खोलने में जुट गए हैं.
सब-इंस्पेक्टर भर्ती घोटाले और हाईकोर्ट के आदेश के बाद दोस्ती का मुखौटा उतर गया। श्रेय लेने की होड़ ने रिश्ते की असलियत सामने ला दी. किरोड़ी खुद को घोटाले का भंडाफोड़ करने वाला नायक बता रहे हैं, तो बेनीवाल अपने आंदोलनों को असली वजह मानते हैं.
बात यहीं तक नहीं रुकी. आरोप-प्रत्यारोप की बौछार में हनुमान ने किरोड़ी को “फर्जी गांधीवादी” और “बिकाऊ” कहा, तो किरोड़ी ने पलटवार करते हुए दावा किया कि राज्यसभा चुनाव में बेनीवाल ने पैसे मांगे थे. यह केवल बयानबाज़ी नहीं, बल्कि ऐसे खुलासे हैं जिन्होंने दोनों नेताओं की साख पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
अब समीकरण साफ हैं. नागौर, दौसा और पूर्वी राजस्थान में जहां दोनों का दबदबा था, वही दबदबा अब एक-दूसरे को काटेगा.वोट बैंक बंटेगा और कांग्रेस-भाजपा को फायदा मिलेगा. तीसरे मोर्चे की जो उम्मीद इनकी दोस्ती से जगती दिख रही थी, वह बिखर चुकी है.
असल लड़ाई अहंकार और अस्तित्व की है. दोनों नेता जानते हैं कि उनकी ताकत युवाओं और किसानों की नाराज़गी है. लेकिन जब समर्थन आधा-आधा बंटेगा, तो ताकत भी आधी रह जाएगी.
यह जंग महज़ दो नेताओं की निजी दुश्मनी नहीं, बल्कि राजस्थान की राजनीति का आईना है — जहां जनता पीछे और सत्ता का स्वार्थ आगे खड़ा दिखाई देता है.
बाल मुकुंद जोशी