Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

Responsive Advertisement

बेनीवाल का ‘जुझारूपन’ कैसे खामोश कर देता है सत्ता के गलियारे को?


बाल मुकुंद जोशी

पत्रकार द्वारा “आप इतना कैसे दौड़ लेते हैं?” पूछे जाने पर हनुमान बेनीवाल ने हलके अंदाज में जवाब दिया – “मैं कम खाता हूं… इसलिए ज्यादा काम कर लेता हूं, थोड़ा सो जाता हूं बस।”बोल तो सहज थे, लेकिन उन्होंने मौजूदा राजनीति की एक बड़ी हकीकत को छू दिया.

दरअसल, बेनीवाल की यही लगातार दौड़-धूप और आक्रामक सक्रियता वह वजह है, जिसने न केवल अफसरशाही को हैरान किया है, बल्कि खुद सरकार के मंत्री और यहां तक कि मुख्यमंत्री तक को जवाब देने से पहले सोचने को मजबूर कर दिया है। उनकी चेतावनी भरी भाषा और निडर शब्दावली से अक्सर जिम्मेदारों की ‘जिम्मेदारी’ दबी रह जाती है, यही जनता को भी हैरत में डाल देता है.

सियासी गलियारों में यह चर्चा आम है कि आख़िर बेनीवाल के पास ऐसी कौन-सी ‘राजनीतिक कुंजी’ है कि बड़े-बड़े मंत्री भी पलटवार करने से बचते हैं। मुख्यमंत्री तक कई मौकों पर बेनीवाल के सवालों पर चुप्पी साध जाते हैं.

एक वरिष्ठ नेता ने तो यहां तक कह दिया – “कौन सिर दीवार से भिड़ाए?”

इधर रालोपा सुप्रीमो को लेकर माना जा रहा है कि वे अपने राजनीतिक जीवन की ‘अंतिम बड़ी लड़ाई’ लड़ रहे हैं। हालांकि मौजूदा संकेत फिलहाल उनके पक्ष में जाते दिखाई दे रहे हैं.

यह भी चर्चा है कि अगर बेनीवाल इसी जुझारूपन के साथ मैदान में डटे रहे, तो 2028 का विधानसभा चुनाव उनके लिए स्वर्ण काल साबित हो सकता है.

विशेष बात यह है कि बेनीवाल ने अब तक यह भरोसा कायम रखा है कि तेज आवाज़ के पीछे जनहित की दृढ़ इच्छा शक्ति मौजूद है – यही बात उन्हें बाकी नेताओं से अलग करती है.

अगर यही रफ्तार बरकरार रही, तो दीवारें भी जवाब देने को मजबूर होंगी.