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दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्त्ता पर हमला


राजधानी की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता पर हुए हमले की पूरे देश में कड़ी निंदा की जा रही है। आम लोगों से लेकर राजनीतिक दलों तक सभी ने इस कायराना हरकत को लोकतंत्र के खिलाफ बताया। मगर बड़ा सवाल यह है कि क्या हम एक समान लोकतांत्रिक मानदंड अपनाने को तैयार हैं?

गौर करने वाली बात ये है कि वही कुछ लोग, जो आज रेखा गुप्ता पर हुए हमले के खिलाफ मोर्चा खोलकर खड़े हैं, पिछले दिनों अरविंद केजरीवाल पर हुए हमले को ताली बजाकर देख रहे थे। सोशल मीडिया पर उस वक्त कुछ "विशेष विचारधारा" के लोगों ने इसे “सबक” बताया था और बाकायदा चटखारे लेकर मज़ा लिया था।

आलोचना करने वालों की इस दोहरी मानसिकता पर अब राजनीतिक गलियारों में भी सवाल उठने लगे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि "राजनीति में असहमति हो सकती है, विचारधारा अलग हो सकती है, लेकिन हिंसा का समर्थन किसी भी रूप में लोकतंत्र को कमजोर करता है।"

लोकतंत्र में विरोध की गुंजाइश हमेशा होती है, लेकिन यह विरोध विचारों तक सीमित रहे — यही उसकी खूबसूरती है। अगर हम किसी एक नेता पर हुए हमले को सही ठहराते हैं और दूसरे के मामले में पोस्टर-बैनर लेकर सड़क पर खड़े हो जाते हैं, तो यह केवल राजनीति नहीं, बल्कि नैतिक पतन का संकेत है।

गलत के ख़िलाफ़ बोलना सीखिए,राजनीति में इतने अंधे मत बनिए कि हिंसा को तर्क समझने लगें।