जयपुर
"अब शोरूम वाले अंकल नहीं, लोग मुझे 'सीए अंकल' कहते हैं।" — यह कहना है 71 साल के ताराचंद अग्रवाल का, जिन्होंने अपने जीवन के सबसे कठिन दौर में चार्टर्ड अकाउंटेंसी की राह चुनी और सफल भी हुए। न कोचिंग ली, न ट्यूशन — सिर्फ यूट्यूब और किताबों के सहारे सीए की सबसे कठिन परीक्षा पास कर ली।
ताराचंद अग्रवाल 2014 में स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर से असिस्टेंट जनरल मैनेजर के पद से रिटायर हुए थे। 2020 में पत्नी दर्शना अग्रवाल का निधन हुआ। अकेलेपन ने दिल को तोड़ा, लेकिन हिम्मत नहीं टूटी। जीवन को दोबारा संवारने के लिए उन्होंने गीता पढ़नी शुरू की और फिर पढ़ाई की लत दोबारा लग गई।
पोती ने कहा- आप कर सकते हो दादू बीकॉम कर चुके ताराचंद पीएचडी का सोच ही रहे थे कि पोती ने एक बात कह दी — "जब आप मुझे गाइड कर सकते हैं, तो खुद क्यों नहीं कर सकते?" यही लाइन उनके लिए प्रेरणा बन गई। 2021 में सीए का रजिस्ट्रेशन कराया। 2022 में फाउंडेशन, 2023 में इंटर पास किया। मई 2024 में फाइनल में असफलता मिली, लेकिन हार नहीं मानी। मई 2025 में फिर से परीक्षा दी और सीए बन गए।
कोचिंग नहीं, शोरूम पर काउंटर की कुर्सी बनी क्लासरूम
ताराचंद ने कोचिंग नहीं की। छोटे बेटे के जनरल स्टोर पर बैठकर काउंटर पर ही पढ़ते रहे। वहीं से इंटरमीडिएट और फाइनल तक की तैयारी की। जो नहीं समझ आता, वह यूट्यूब से सीखते। उनका मानना है कि पढ़ाई में गहराई होनी चाहिए, सिर्फ एग्जाम पास करना उद्देश्य नहीं होना चाहिए।
बोले- बच्चे समझते थे मैं पेपर लेने आया हूं
जब ताराचंद परीक्षा देने गए, तो छात्रों को लगा कि शायद वे पेपर लेने आए हैं। लेकिन जब पता चला कि वह भी एग्जाम में बैठे हैं, तो छात्र हैरान रह गए। जल्दी घुल-मिल जाने की आदत के कारण वह सबके प्रिय बन गए।
बैंक की नौकरी से लेकर सीए तक का सफर
22 साल की उम्र में बैंक जॉइन किया, क्लर्क से एजीएम बने। देशभर में अलग-अलग पोस्टिंग रहीं। 2014 में रिटायर हुए। इसके बाद जीवन ने करवट ली। पत्नी की मौत से टूटे लेकिन बच्चों और पोतियों के सहारे दोबारा खड़े हुए। आज दोनों बेटे टैक्स और सीए प्रैक्टिस में हैं और बहुएं भी प्रेरणास्त्रोत हैं।
अब लोग कहते हैं – सीए अंकल आ गए
ताराचंद कहते हैं, "अब लोग बच्चों को मुझसे गाइडेंस के लिए भेजते हैं। संघर्ष करने वाला ही सही दिशा दिखा सकता है। आजकल के बच्चों को यही कहता हूं — डरने से कुछ नहीं होगा, मेहनत ही रास्ता है।"
'सीए अंकल' की यह कहानी इस बात का सबूत है कि उम्र सिर्फ एक नंबर है — जुनून हो तो 71 साल की उम्र में भी पहाड़ जैसी परीक्षा फतह की जा सकती है।