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संघर्ष की राजनीति का पर्याय हनुमान बेनीवाल The synonym of struggle-based politics — Hanuman Beniwal.



बाल मुकुंद जोशी

राजस्थान में संघर्ष की राजनीति का पर्याय बन चुके हनुमान बेनीवाल को लेकर सत्ता भोग रहे और भोग चुके राजनेताओं के मत उनके लिए कुछ हो लेकिन यह कटु सत्य है कि आज यदि सड़क पर बेनीवाल खड़े ना तो इस सूबे का विपक्ष मृतप्राय: हो चुका है.

   मजे की बात तो यह है कि कांग्रेस शासन प्रणाली की आलोचना कर सत्ता पर काबिज हुई भाजपा के वादे आज टाय टाय फीस है. जिन लोगों ने 'कमल' के शासन की प्रतीक्षा की आज उन्हें पूरी तरह निराश होना पड़ रहा है. यहां तक की इस बीजेपी से जुड़े वरिष्ठ नेता, कार्यकर्ता और समर्थक अपने आप से ही सवाल कर रहे हैं कि जो आज हम भोग रहे हैं क्या ऐसे ही शासन व्यवस्था की कामना की थी? दरअसल राज में आने के बावजूद अधिकतर भाजपाई काफी परेशान, दुखी और नाराज नजर आ रहे हैं.

   इधर कांग्रेस सत्ता हीन होने के बाद आज भी गुटबाजी में पूरी तरह फंसी हुई है. देखने और दिखाने में इसके दो बड़े नेता फोटो फ्रेम में एक जगह है. इसके बावजूद संगठनात्मक स्तर पर पार्टी की युवा इकाईयों का मूल संगठन से आरपार की ठनी ठनाई किसी से छुपी हुई नही है. ऐसे में 'हाथ' विपक्ष की भूमिका में पूरी तरह फ्लाप है.

   राजस्थान में सत्ता का इकबाल पूरी तरह गायब है. हर ओर त्राहि त्राहि मची हुई है.आंदोलनों की बौछार से गुलाबी नगरी छटपटा रही है.शासन व्यवस्था पर चुने हुए जनप्रतिनिधियों की बजाय अफसरशाही हावी हो चुकी है. इसके लिए कोई भी जवाबदार नहीं है. मतलब साफ है राज्य का मुखिया भाग्यशाली है जो "उड़नखटोले" पर सवार है. इसलिए शासन व्यवस्था भी राम भरोसे चल रही है.
 
   माना सत्ता में आये राजनेता राजधर्म को भूल जाते हैं लेकिन उन्हें याद दिलाने के लिए सशक्त विपक्ष का होना भी आवश्यक है हालांकि संख्या बल में तो विपक्ष जरूर है लेकिन सत्ता से दो-दो हाथ करने में पूरी तरह नकारा साबित हुआ है. ऐसे में हनुमान बेनीवाल ने विपक्ष की ज्योति को प्रज्ज्वलित कर रखा है.