बाल मुकुंद जोशी
राजस्थान में इस बार सत्ता में लौटी भाजपा का मंसूबा है कि वो हर हाल में जनपद की महत्वपूर्ण नगर परिषद में केसरिया झंडा लहराए. इसके लिए शहर की चारों दिशाओं में बसे 26 गांवों को शामिल करते हुए नगर परिषद सीमा का विस्तार कर अब वार्डो का पुनर्गठन एवं पुनर्सीमांकन किया जा रहा है, यह फैसला नगर परिषद में कांग्रेस की बपौती को वंचित करने का शिद्दत से प्रयास है. देखा जाए तो वार्डों के पुनर्सीमांकन से होने से कांग्रेस के एक तरफा बने माहौल को जोरदार झटका लग जायेगा.
दरअसल अभी तक कांग्रेस ने बहुमत को पाने के लिए करीब 30 वार्डों को मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले बना रखे थे. जिनमे जीतकर आने वाला पार्षद हाथ की झोली में स्वतः ही जाता रहा है क्योंकि कांग्रेस ने एक तरह से चैयरमैन की कुर्सी कथित मुस्लिम नेता के लिए आरक्षित कर रखी है. ऐसे में कांग्रेस से इत्तर जीतने वाले निर्दलीय पार्षद भी कौम के नाम पर लामबंद होते रहे है. कांग्रेस पार्टी से जीते एससी एसटी और अन्य जाति के करीब - करीब 15 से 20 पार्षदों का साथ होने भाजपा मुंह बाहें खड़ी रह जाती है और 'कमल' के लिए जीत एक दिवास्वप्न बनकर रह गई है.
संभवत इस वर्ष के अंतिम महिनों में होने वाले निकाय चुनाव में भाजपा अब तक की कसक को निकालने को लेकर गंभीर है. तभी तो वार्ड सीमाओं में इस प्रकार से बदलाव किया जा रहा है कि मुस्लिम पार्षदों की संख्या घट जाये. शहरी राजनीति के प्रमुख मुस्लिम नेताओं में निवर्तमान सभापति जीवण खां, उनकी पत्नी खतीजा बानो, वरिष्ठ पार्षद अब्दुल रजाक पंवार,मुश्ताक खां, शाकिर भारती, अब्दुल लतीफ चौहान और साबिर बिसायती के अलावा निवर्तमान उप सभापति अशोक चौधरी के वार्डों की सियासी गणित बदलने की जोरदार कसरत की गई है, हालांकि पूर्व सभापति जीवण खां ने अपने भविष्य के वार्ड की संरचना को दुरूस्त रखने के लिए भाजपा में गोटी फीट करते हुए कामयाबी हासिल कर ली है.
मजे की बात है कि एक तरफ भाजपा नगर परिषद में कब्जा जमाने की हरमुमकिन कोशिश में जुटी है तो दूसरी ओर कांग्रेस में अंतर्कलह का पूरी तरह बोलबाला है. खासकर निवर्तमान सभापति और चुनाव लड़ने के इच्छुक वरिष्ठ पार्षदों के बीच अभी से एक-दूसरे की कारसेवा करने का कोई मौका नहीं चूक रहे है.
बहरहाल चुनाव अखाड़े में पटखनी देने के खेल में वक़्त जरूर है लेकिन दंगल के बाहर के दांव पेच खूब जोर-शोर से खेले जा रहे है.