बाल मुकुंद जोशी
जुझारू और संघर्ष के पर्याय बन चुके कामरेड अमराराम के चार दशक के लम्बे सियासी सफर को कल एक बड़ा मुकाम मिला है. जब उनको तमिलनाडू के मदुरई में माकपा के अधिवेशन में पोलित ब्यूरो का सदस्य चुना गया है. राजस्थान से कोई नेता पहली बार पोलित ब्यूरो का सदस्य बनना जिसे अपने आप में बढ़ी उपलब्धि कही जा सकती है.
राजस्थान में किसान वर्ग की राजनीति कर कई राजनेता स्वयं बुलंद जरूर हुए है लेकिन अमराराम के संघर्ष को कमेरू जमात ने सच्चे दिल से स्वीकारा है. कांग्रेस और बीजेपी के नेताओं की किसानों के प्रति हमदर्दी से ज्यादा खेत के किसान को लाल झंडे की लड़ाई पर अधिक ऐतबार रहा है. यह सब इसलिए है कि "अमरा" किसी सियासी गणित को समझे बिना हर जरूरतमंद के लिए खड़ा मिला है.
सीकर जिले के मुंडवाड़ा में जन्मे अमराराम ने खुद के साथ-साथ वामपंथ आंदोलन की जड़े शेखावाटी जनपद में ऐसी जमाई जिसकी धाक माकपा की सियासत में वर्षों से जमी हुई है. छात्र और ग्रामीण राजनीति से अपनी राजनीति के सफर की शुरुआत करने वाले वामपंथी नेता ने आठ बार विधानसभा
और छ: दफा लोकसभा का चुनाव लड़ा. उनका चुनावी अखाड़े में दिग्गज नेताओं डा.बलराम जाखड़,देवीलाल (ताऊ),रामदेव सिंह महरिया (सभी दिवंगत) और नारायण सिंह और स्वामी सुमेधानंद सरस्वती से हुआ. चार विधायक रहे और वर्तमान में सांसद अमराराम की राजनीति संघर्ष की सियासत करने वाले युवा नेताओं के लिए प्रेरणास्रोत है क्योंकि वर्ष-1996 के उनके पहले लोकसभा चुनाव में समर्थकों ने नारा लगाया था 'लाल लाल लहराएगा अमरा दिल्ली जाएगा'। यह नारा आखिरकार वर्ष-2023 में साकार हो गया.