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गहलोत सरकार ने विधायकों की खुशी की खातिर जिलों के नाम तक बदल डाले




इस बात से कांग्रेसी भी असहमत नहीं हो सकते है कि अशोक गहलोत ने चुनावी लाभ प्राप्त करने के लिए 17 जिलें और तीन संभागों का गठन किया था. कुछ योग्यता रखते थे और कुछ नहीं.यहां तक कि कुछ जिलों के साथ दूसरे कस्बों का नाम जोड़कर विधायकों को उपकृत किया.


डीग जिला बनने की हैसियत नहीं रखता था लेकिन तत्कालीन पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह को खुश करना था, इसलिए पात्रता नहीं रखते हुए भी इसे जिला बनाया गया.अब इसलिए बरकरार रखा गया है क्योंकि यह मुख्यमंत्री भजनलाल के इलाके से ताल्लुक रखता है.अगर इसे समाप्त कर दिया जाता तो मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा की अपने ही इलाके में जबरदस्त थू थू हो जाती.


अब बात करते है खैरथल की.इसमे कोई दो राय नहीं है कि भौगोलिक दृष्टि से यह बहुत छोटा जिला है लेकिन आर्थिक दृष्टि से बहुत समृद्ध है.दिल्ली-जयपुर रेल लाइन से जुड़ा हुआ है तथा व्यापार के लिहाज से खैरथल मंडी की गिनती देश की बड़ी मंडियों में होती है. प्याज और सरसों का प्रचुर मात्रा में उत्पादन होता है. चूंकि यहां के विधायक दीपचंद खैरिया ने गहलोत सरकार बचाने में बहुत मदद की थी. इसलिए खैरथल को जिला बनाना आवश्यक हो गया था.


मदद तो गहलोत की तिजारा विधायक संदीप यादव ने भी की थी. इसलिए वे भी तिजारा को जिला बनवाने के लिए अड़े हुए थे. एक ही जिले (अलवर) में दो जिले बन नहीं सकते थे लेकिन खुश दोनो विधायक खैरिया और यादव को करना था. रामलुभाया कमेटी की सिफारिशों के आधार पर केवल खैरथल को ही जिला घोषित किया गया था लेकिन संदीप यादव के दबाव के चलते गहलोत ने इस जिले का नाम अधिसूचना के वक्त खैरथल-तिजारा बदल दिया.यानी खैरथल के साथ तिजारा की भी पूछड़ी जोड़ दी.


इसी तरह बहरोड़ के विधायक बलजीत यादव और कोटपूतली से मंत्री राजेन्द्र यादव को भी खुश करना आवश्यक था. गहलोत के राजेन्द्र यादव नाक के बाल थे तो बलजीत यादव ने सरकार बचाने में अहम भूमिका अदा की. इसलिए दोनों को राजी करने की गरज से जिले का नाम रखा गया बहरोड़-कोटपूतली. इसी तरह महेंद्र चौधरी तथा चेतन डूडी को उपकृत करने के लिए जिला बनाया गया डीडवाना-कुचामन.

केकड़ी और दूदू कैसे जिले बने,यहसर्वविदित है.