राजस्थान में कांग्रेस द्वारा जिलाध्यक्षों के नाम घोषित किए जाने के बाद से कई जिलों में नई-नई कहानियां सामने आ रही हैं. धौलपुर के बसेड़ी विधायक संजय कुमार की वायरल चिट्ठी के बाद अब सुजानगढ़ से विधायक मनोज मेघवाल का मामला चर्चा में है. चूरू जिला अध्यक्ष बनाए जाने की उनकी कहानी राजनीतिक गलियारों मेंअजीबोगरीब मानी जा रही है.
सूत्रों के अनुसार, विधायक मनोज मेघवाल किसी भी स्थिति में जिलाध्यक्ष नहीं बनना चाहते थे, लेकिन जयपुर से आए आदेश के आगे वह विवश हो गए.जिले के शीर्ष नेताओं की आपसी खींचतान के कारण मेघवाल का नाम अध्यक्ष पद के लिए जबरन प्रस्तावित कर दिया गया.नतीजा यह रहा कि पद मिलने के बाद भी वह बिल्कुल उत्साहित नहीं दिखे. बताया जाता है कि उन्होंने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को औपचारिक धन्यवाद तक नहीं दिया और अपने दोनों फोन भी स्विच ऑफ कर रखे हैं.
मामले की जड़ जिले की गुटबाज़ी में छिपी है. डोटासरा ने मेघवाल को उनकी इच्छा के विपरीत अध्यक्ष की कुर्सी इसलिए सौंप दी क्योंकि राजनीतिक खेमों में तीखी रस्साकशी चल रही थी. मकबूल मंडेलिया और कृष्णा पूनिया के बीच मतभेद गहराए हुए थे. रतनगढ़ विधायक पूसाराम गोदारा कृष्णा पूनिया को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, जबकि सांसद राहुल कस्बा पूनिया के पक्ष में नहीं थे. उनका तर्क था कि राजगढ़ में नया पावर सेंटर न बने. अंततः सभी नेताओं ने ‘उपाय’ के रूप में मनोज मेघवाल के नाम पर सहमति जताई.
लेकिन विधायक मेघवाल स्वयं जाट राजनीति की उलझनों से दूरी बनाए रखना चाहते हैं. वह सुजानगढ़ से बाहर जिले की सियासत में सक्रिय होने के इच्छुक नहीं हैं. भले ही उनके पिता, पूर्व मंत्री स्वर्गीय मास्टर भंवरलाल मेघवाल, प्रदेश की राजनीति के दमदार चेहरे रहे हों, पर मनोज में वैसी सियासी प्रभावशीलता दिखाई नहीं देती. आने वाले पंचायत चुनावों में समीकरण बिगड़ने की आशंका भी उन्हें चिंतित करती है. इसी कारण वे अध्यक्ष बनने के बाद पूरी तरह खामोश हैं.
दिलचस्प है कि जहां 12 विधायक जिला अध्यक्ष बनने के बाद उत्साह दिखा रहे हैं, वहीं दो विधायकों ने खुलकर अपनी नाखुशी जाहिर की—एक ने नियुक्ति से पहले ही पत्र लिखकर विरोध दर्ज कराया, जबकि मनोज मेघवाल अब नियुक्ति के बाद ‘चुप्पी साधने’ के लिए सुर्खियों में हैं.