बीकानेर में बेनीवाल की महारैली: “अभी नहीं तो कभी नहीं” के नारे से सत्ता की चौखट पर दस्तक
बाल मुकुंद जोशी
राजस्थान की सियासत में आज बीकानेर का सूरज कुछ ज्यादा तप रहा है. आरएलपी प्रमुख और नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने अपने राजनीतिक सफर का शायद सबसे बड़ा दांव यहीं से खेला है. पार्टी के 7 वें स्थापना दिवस पर हो रही इस महारैली को बेनीवाल ने अपनी “राजनीतिक कुरुक्षेत्र” बना दिया है.
मंच से गूंजा नारा — “अभी नहीं तो कभी नहीं”
बेनीवाल के इस तेवर में साफ झलकता है कि वे अब आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं. लाखों कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटाकर आरएलपी यह जताने की कोशिश में है कि राजस्थान की राजनीति में अब तीसरी ताकत बनकर उभरने से उसे कोई नहीं रोक सकता.
लेकिन सवाल बड़ा है — क्या इतिहास खुद को दोहराएगा?
राजस्थान में अब तक तीसरी ताकत बनने के जितने भी प्रयास हुए, सब नाकाम रहे. न रामराज, न जनता पार्टी, न बसपा, न माकपा न आप — कोई भी समीकरण टिक नहीं पाया.ऐसे में हनुमान बेनीवाल का यह प्रयास आखिरी प्रयोग माना जा रहा है. अगर यह सफल हुआ, तो कांग्रेस और भाजपा के पारंपरिक गणित में बड़ी सेंध लग सकती है.
बेनीवाल का सफर भी किसी आम नेता जैसा नहीं रहा. कभी भाजपा के सहयोगी रहे, तो कभी कांग्रेस सरकार से भिड़ गए. जनता के मुद्दों को लेकर सड़कों पर उतरने की उनकी राजनीति अब बीस बरस पार कर चुकी है. मगर हाल के महीनों में उनके सुर बदले हैं — टकराव की जगह अब समझौते और संतुलन की राजनीति की झलक दिखती है. शायद यह बदलाव उन्हें सत्ता के करीब ले जाने की रणनीति का हिस्सा हो.
फिलहाल, बीकानेर की इस रैली ने साफ कर दिया है कि बेनीवाल का इरादा गंभीर है —या तो इस बार "बोतल" भर जाएगी सत्ता के रस से, या फिर खाली रह जाएगी आने वाले पांच साल तक.
राजस्थान की सियासी जमीन पर यह तय करना अब जनता के हाथ में है कि बेनीवाल की यह हुंकार सत्ता की दस्तक बनती है या सिर्फ गूंज बनकर रह जाती है.