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श्री क्षत्रिय युवक संघ के संरक्षक भगवान सिंह रोलसाबसर का निधन The patron of Shri Kshatriya Yuvak Sangh, Bhagwan Singh Rolsabasar, has passed away.

भगवान सिंह रोलसाहबसर: एक प्रेरणादायी जीवन यात्रा

 श्री क्षत्रिय युवक संघ के चतुर्थ संघ प्रमुख माननीय भगवान सिंह रोलसाहबसर का जीवन संघर्ष, समर्पण और समाज सेवा का अनुपम उदाहरण है. 2 फरवरी 1944 को सीकर जिले की फतेहपुर तहसील के रोलसाहबसर गांव में जन्मे भगवान सिंह, स्व. श्री मेघसिंहजी और श्रीमती गोम कंवर की पांचवीं संतान थे. जन्म से कुछ दिन पूर्व ही पिता का देहावसान हो गया, जिसके बावजूद उन्होंने कठिन परिस्थितियों में शिक्षा और समाज सेवा का मार्ग चुना.

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

1955 तक गांव में प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद भगवान सिंह ने 1960 में चमड़िया कॉलेज, फतेहपुर से मैट्रिक और रुईया कॉलेज, रामगढ़ शेखावाटी से प्री-यूनिवर्सिटी की डिग्री हासिल की. 1961 में चूरू के लोहिया कॉलेज में प्रवेश लिया. उसी वर्ष रतनगढ़ में आयोजित सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में उनकी मुलाकात पूज्य तनसिंहजी से हुई, जिनके मार्गदर्शन में वे जयपुर आए और राजस्थान कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की.

संघ के प्रति समर्पण

1963 में रतनगढ़ के एक और प्रशिक्षण शिविर ने उन्हें श्री क्षत्रिय युवक संघ का समर्पित स्वयंसेवक बना दिया. जयपुर के राजपूत छात्रावास में शाखा का दायित्व संभालते हुए उन्होंने संगठन को मजबूती प्रदान की. 1964-65 में पूज्य तनसिंहजी के सान्निध्य में दिल्ली रहे और 1967 में उनके साथ सिवाना (बाड़मेर) में व्यवसाय शुरू किया. यहीं ठाकुर तेजसिंहजी की सुपुत्री से उनका विवाह हुआ. पूज्य तनसिंहजी और नारायणसिंहजी के मार्गदर्शन में वे संघ के कार्यों में और गहराई से जुड़े.

संघ प्रमुख का दायित्व

1979 में पूज्य तनसिंहजी और 1989 में पूज्य नारायणसिंहजी के देहावसान के बाद भगवान सिंह पर संघ प्रमुख का दायित्व आया. उन्होंने राजस्थान से गुजरात तक स्वयंसेवकों से व्यक्तिगत संपर्क साधा और प्रशिक्षण शिविरों व शाखाओं की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि की. 22 दिसंबर 1996 को संघ की स्वर्ण जयंती पर इसके वृहद स्वरूप को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया.

महिलाओं और परिवारों तक विस्तार

उनके नेतृत्व में संघ का दायरा पुरुषों तक सीमित न रहकर महिलाओं और बालिकाओं तक पहुंचा. बालिका प्रशिक्षण शिविर और दंपति शिविर शुरू हुए. जयपुर, जोधपुर, बाड़मेर, बीकानेर, जैसलमेर, कुचामन और गुजरात के सुरेंद्रनगर में स्थायी कार्यालय स्थापित किए गए. बाड़मेर में ‘आलोक आश्रम’ के रूप में आदर्श शिविर स्थल विकसित हुआ. सीकर में ‘श्री दुर्गा महिला विकास संस्थान’ के जरिए बालिका शिक्षा को बढ़ावा दिया गया.

राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार

संघ का प्रभाव राजस्थान और गुजरात से निकलकर महाराष्ट्र, दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और दक्षिण भारत तक फैला. जून 2020 तक भगवान सिंह 330 शिविरों में सक्रिय रूप से शामिल हो चुके हैं. समाज की अपेक्षाओं को समझते हुए उन्होंने ‘श्री प्रताप फाउंडेशन’ के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर लोगों को जोड़ने का कार्य शुरू किया.

प्रेरणा का स्रोत

संघ प्रमुख के रूप में भगवान सिंह रोलसाहबसर ने न केवल संगठन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, बल्कि समाज सेवा और सामाजिक एकता के लिए एक प्रेरणादायी उदाहरण प्रस्तुत किया. उनका जीवन लाखों स्वयंसेवकों और समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है.