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चित्तौड़गढ़ में डोडा चूरा, बजरी व हफ्ता वसूली माफिया सक्रिय Mafia involved in opium husk (doda choora), sand mining, and extortion are active in Chittorgarh.


भुवनेश व्यास 
दक्षिणी राजस्थान का चित्तौड़गढ़ जिला जो कभी माफिया से अछूता कहा जाता था वहां आज हर तरह का माफिया अपने पैर जमा चुका है और इसके पीछे स्थानीय स्तर पर राजनीतिक संरक्षण के साथ राज्य सरकार भी कहीं ना कहीं दोषी है। इसके अलावा तेजी से हो रहे औद्योगिकरण से यहां पर हफ्ता वसूली माफिया भी अपनी जड़ें जमा रहा है।

अपनी ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विरासत के लिए प्रसिद्ध चित्तौड़गढ़ जिले में अफीम की खेती प्रचूर मात्रा में होती है। 2016 में डोडा चूरा के संग्रहण, खरीद फरोख्त व परिवहन पर रोक लगने के बाद से इसकी तस्करी तेजी से बढ़ी है। सरकार ने प्रतिबंध के साथ ही नष्टीकरण के लिए स्थानीय स्तर पर एक समिति बना दी लेकिन तब से आज तक छंटाक भर भी डोडा चूरा नष्ट नहीं हुआ उल्टे इसकी आड़ में समिति अधिकारियों की वसूली की एक नई प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई जिसे पूर्व विधायक राजेंद्रसिंह बिधूड़ी ने उजागर भी किया और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने एक प्रकरण भी दर्ज किया। तब भाजपा के नेताओं ने बड़ी बड़ी बातें की लेकिन डेढ़ वर्ष पूर्व सत्ता में आने के बाद वे भी इसी खेल में लिप्त हो गये और राज्य सरकार पर किसानों की आड़ में नष्टीकरण की कोई नीति नहीं बनने दी जिसके फलस्वरूप आज जिले में डोडा चूरा की तस्करी बड़े पैमाने पर की जा रही है जो पुलिस और अन्य एंटी नारकोटिक्स एजेंसियों के आंकड़ों से साबित हो रही है। गत वर्ष राज्य सरकार ने डोडा चूरा नष्टीकरण पर सख्ती के आदेश जारी किये लेकिन उस पर काम शुरू होने से पहले ही यहां सक्रिय माफिया को संरक्षित कर रहे ने इन आदेशों को भी सरकार पर दबाव बनाकर डस्टबीन में पहुंचा दिया। स्थानीय राजनीति का डोडा माफिया के साथ इतना मजबूत गठजोड़ है कि सरकार के आदेश पर जिला कलेक्टर ने ही रोक लगा दी। तत्कालीन प्रभारी मंत्री ने तब दावा किया कि बहुत जल्द इस पर राज्य सरकार नई नीति बना रही है लेकिन अब तक कुछ भी नहीं हुआ और बड़े पैमाने पर तस्करी जारी है।

    इसी तरह सुप्रीम कोर्ट की रोक के साथ जिले से गुजरने वाली बनास नदी से अवैध रूप से बजरी खनन व परिवहन का कार्य 2012 से ही बदस्तूर जारी है। यह भी पूर्णतया राजनीतिक संरक्षण में चल रहा है। पूर्व में भाजपा के एक विधायक के विरूद्ध तो उच्च न्यायालय के कमिश्नर तक ने अपनी रिपोर्ट में बजरी माफिया को संरक्षण देने का स्पष्ट उल्लेख किया है। दो वर्ष पूर्व सर्वोच्च न्यायालय द्वारा आंशिक तौर पर रोक हटा ली जिससे लीजधारक ने कहीं काम शुरू किया तो कहीं पर रोक के चलते बजरी माफिया और परवान चढ़ गया है। सत्तासीन जन प्रतिनिधियों ने अपने कथित कार्यकर्ताओं को इसका जिम्मा दे दिया जिसके बूते बेलगाम हो गया बजरी माफिया इस स्तर पर है कि किसी की भी हत्या कर देना अब मामूली बात हो गई है। बजरी के अवैध कारोबार को लेकर डेढ़ वर्ष में दो युवाओं को गोलियों से भून दिया गया है। गंभीर मारपीट तो रोजमर्रा की घटनाएं हो चुकी है। खनन विभाग अपने पास साधन संसाधनों के अभाव में इसे रोक पाने में असहाय है तो पुलिस प्रशासन जब तक हत्या जैसी घटना ना हो जाए तब तक हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। स्वयं मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने विधानसभा में बजरी के खुले बाजार में जनवरी तक भाव तय करने की घोषणा की थी लेकिन राज्य भर में राजनीतिक संरक्षण में फैले माफिया के दबाव में वे भी यह कार्य नहीं कर पाए। भाव तय नहीं होने के चलते ही अलग अलग गिरोहों द्वारा बजरी के अवैध बाजार पर कब्जे की नीयत से हत्या जैसी वारदातें सामने आ रही है, टोंक सवाई माधोपुर में तो पुलिकर्मी की हत्या और आए दिन पुलिस की पिटाई जारी है।

     इसके साथ ही जिले में उद्योगों से हफ्ता वसूली अथवा काम लेने वाले राजनीतिक गिरोह भी उत्पन्न हो गये है। गंगरार विधानसभा क्षेत्र में यह गिरोह अपनी जड़ें जमा चुका है। राजनीतिक संरक्षण के चलते इन गिरोहबाजों को कोई खौफ नहीं है। इस क्षेत्र में लगने वाली सबसे बड़ी ग्लास फैक्ट्री ने तो इन गिरोहों से तंग आकर राज्य सरकार को यहां से अपना संयत्र पैक करने का भी कह दिया था जिसके बाद इन गिरोहों व बदमाशों पर सख्त कार्रवाई के साथ गैंगस्टर एक्ट लगाया गया तो एक बड़े गुंडे को तड़ीपार भी किया गया जिसका नाम हाल ही बजरी कारोबार में हुई एक गिरोहबाज की हत्या में आया जिसकी तलाश जारी है। जिन पर गैंगस्टर एक्ट लगाया गया उन्हें इतना राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है कि वे जेल से छूटते ही राज्य के गृह मंत्री से मिलने उनके आवास पर पहुंच जाते है। वहीं कुछ क्षेत्रिय विधायक के दांए बांए दिखाई देते है।

   यह स्थिति सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करती है वहीं कानून व्यवस्था को भी तार तार कर रही है। अपनी लालसाओं के चलते पुलिस और अन्य प्रशासनिक अधिकारी राजनीति के आगे नतमस्तक होकर रह गये। हालात कह रहे हैं कि जिले में नौकरशाही के साथ राजनीति में भी सरकार को बड़ी सर्जरी करने की आवश्यकता प्रासंगिक है अन्यथा हालात बाद में बेकाबू हो सकते है।