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निर्मल चौधरी गिरफ़्तारी मामले में चलने लगे है बयानबाजी के तीर In the Nirmal Chaudhary arrest case, war of words has begun.


 
बाल मुकुंद जोशी 

जिस मुकदमें में निर्मल चौधरी की गिरफ़्तारी होकर ज़मानत हुई है. उसको लेकर कांग्रेस पार्टी में बयानबाजी का सिलसिला तेज हो गया है. यह मामला गहलोत सरकार के वक्त का है. जब निर्मल चौधरी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर राजस्थान विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव फाइट कर रहे थे. NSUI की ओर से रितु बराला उम्मीदवार थी. उस दौरान पुलिस से निर्मल और उसके समर्थकों की जोरदार झड़प हुई थी और उस पर राजकार्य में बाधा का मुकदमा दर्ज हो गया.

 उस वक्त आज के कांग्रेस के कई विधायकों ने निर्मल को समर्थन दिया जिसके चलते NSUI की हार हुई. बाद में इन विधायकों ने निर्मल को कांग्रेस में शामिल करवा था.समय का पहिया ऐसा घूमा कि निर्मल ने अपना वजूद पायलट कैम्प से अलग होकर मजबूती देना शुरु कर दी,जो विधायकों को नागवार गुजरा.

  पावर की सियासत के चलते युवा नेता भूल गये थे कि सरकारी फाइलों में छिपा जीन कभी भी बाहर आ सकता है और फिर हुआ भी ऐसा ही. पुलिस और निर्मल विरोधियों ने उसी मुकदमें में गिरफ़्तार करवा दिया.

  अब इस गिरफ्तारी को लेकर नेतागिरी होने लगी है.
 इस मसले में सहानुभूति की बजाय आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति ने जोर पकड़ लिया है. सचिन पायलट के खास विधायक और युवा कांग्रेसाध्यक्ष अभिमन्यु पूनिया ऐसे मुकदमें वापस न लेने के लिए अशोक गहलोत को तोहमत दी है तो एक जाति विशेष के वर्ग ने निर्मल के पक्ष में आंदोलन न करने पर एनएसयूआई के प्रदेशाध्यक्ष विनोद जाखड़ को आडे हाथ ले रहा हैं.यह लोग जाखड़ की खामोशी से नाराज है जबकि जाखड़ ही नहीं समूची कांग्रेस ने निर्मल की गिरफ्तारी के मामले में खामोशी की चादर ओढ़ रही.जिसके दीगर कारण है.

 बहरहाल छात्र नेता की गिरफ़्तार मामले में कांग्रेस की अंदरुनी सियासत का नजारा खुलकर सामने आ गया है.