■ बाल मुकुंद जोशी
संघर्ष का प्रतीक बन चुके हनुमान बेनीवाल पिछले तीन-चार दिनों से जयपुर के शहीद स्मारक पर SI भर्ती आंदोलन को मजबूती देने के लिए शिद्दत के साथ जुटे है.दूसरी ओर विरोधी भी उनके प्रयासों को अंजाम तक न पहुंचे, इसके वास्ते भरपूर कोशिश में लगे है.
दरअसल कांग्रेस-भाजपा के कई बड़े नेताओं के जोर से बेनीवाल के धरने पर आशातीत भीड़ इकठ्ठा नहीं हो पाई है. खुल्लम खुल्ला बोलकर दिग्गजों को चपेट में लेने से सुप्रीमो से खफा राजनेताओं ने धरने को फ्लाप करने की रणनीति बना ली थी,बस उसी लाइन पर काम हो रहा है.तभी तो बेनीवाल राजस्थान में कांग्रेस-भाजपा के मिले-जुले खेल का आरोप जड़ते है.
राजस्थान की तीसरी सियासी ताकत बनने का ख्वाब पाले बैठे बेनीवाल को यह सब दिवास्वप्न सा लगने लगा है. चुनाचे वो अब इस मसले पर पीछे हटने के संकेत भी देने लगे है.उनका कहना है कब तक संघर्ष होगा? आखिर राजस्थान की जनता कांग्रेस-भाजपा
की चक्की में फिसने को ही अपना तकदीर बना चुकी है.
पिछले दशक में बेनीवाल की पार्टी रालोपा का डंका नागौर के साथ-साथ पश्चिम राजस्थान के जोधपुर,बाड़मेर समेत कई दूसरे जिलों में बजने लगा. जिसके सबब वो आजादी के साथ बयानबाजी कर रहे थे. जिससे कांग्रेस-भाजपा के प्रमुख नेता असहज महसूस करने लगे. जिसके चलते पिछले महिनों हुए उपचुनाव में घरेलू सीट खींवसर में 'हाथ'और 'कमल' ने योजनाबद्ध तरीके से "बोतल" को निपटा दिया. बेनीवाल इस हार से बुरी तरह व्यथित है. अब घायल शेर की तरह पराजय का बदला लेने पर उतारू तो है लेकिन अभी वो सफल नहीं हो सके है.
कुल मिलाकर सियासत के शेर की दहाड़ मद पड़ी है. इन दिनों आ रहे उनके बयानों से साफ-साफ लगता है कि लोग संघर्ष में कम गुलामी से फायदा लेने में लगे है.