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भ्रष्टाचार की पोल खुली तो उठी मदरसा व्यवस्था पर अंगुली ! Madarsa corruption exposed

 

अब्दुल रज़ाक पंवार

 राजस्थान मदरसा बोर्ड में व्याप्त अनियमितताओं और भ्रष्टाचार का मामला पिछले दिनों जब विधानसभा में उठा तो फिर इसकी व्यवस्थाओं पर भी उंगली उठ गई. पता चला कि अकेले सीकर जिले में ही अनेको ऐसे मदरसे है जो कागजों में चल रहे हैं और सरकारी सुविधाओं का भारी दुरुपयोग कर रहे है. हकीकत में ऐसे नाम निहाद मदरसों का पढ़ाई लिखाई से कोई लेना देना नहीं हैं. इनमें से कई सरकारी सहायता का अवैध रूप से मजा लूटने के लिए कागजों में खुले हुए है तो कई निजी स्कूल वालों ने भूमि भवन का संस्थानिक पट्टा न होने के कारण मदरसा बोर्ड की मान्यता ले रखी है. बता दें कि राज्य सरकार के नियमानुसार स्कूल अथवा कॉलेज संचालन के लिए सम्बद्ध स्कूल के भूमि भवन का संस्थानिक पट्टा होना अनिवार्य है जबकि मदरसा बोर्ड से मान्यता लेने के लिए इस प्रकार की कोई शर्त नहीं हैं. यानी कि बोर्ड से प्राथमिक अथवा उच्च प्राथमिक स्तर की मान्यता के लिए राजनीतिक पहुंच और 11 लोगों की एक कमेटी बहुत है, इस खानापूर्ति के बाद बोर्ड से हवाई जहाज की गति पर सवार होकर मान्यता आ जाती है. तत्पश्चात यह कहने को तो मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त मदरसा ही होता है लेकिन वास्तव में संचालन हिन्दी अथवा अंग्रेजी माध्यम प्राइवेट विद्यालय जैसा होता है, वैसे ही छात्र छत्राओं से मोटी फीस वसूली जाती है.  यही नहीं कई निजी स्कूल वाले मदरसे की आड में सरकार द्वारा विद्यार्थियों को दी जाने वाली सामग्री का दुरूपयोग भी खुलकर करते है। विशेषकर ऐसे निजी स्कूलों में बोर्ड द्वारा नियुक़्त  शिक्षा अनुदेशक अपनी सेवाएं देते है, जो मदरसा बोर्ड से देय मानदेय के अतिरिक़्त निजी स्कूल संचालक से अतिरिक़्त सेवा शुल्क और वसूलते हैं.







शाला दर्पण झूठ न बोले :-

राजस्थान मदरसा बोर्ड में यूनिफार्म खरीद के नाम पर हुए करोड़ों रुपये के घोटाले का मामला विधानसभा में उठा तो शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने मदरसा बोर्ड में यूनिफार्म और मिड-डे मिल योजना में भारी घपलेबाजी की बात स्वीकारी. उन्होंने बताया कि प्रदेश की पूर्ववर्ती अशोक गहलोत सरकार के समय कोरोना काल के दौरान राजस्थान मदरसा बोर्ड द्वारा संचालित मदरसों में 59, 81000 छात्र - छात्राओं का पंजीयन था लेकिन सामग्री वितरण में यह संख्या बढ़कर 66, 22, 000 दर्शाई गई, जो संदेहास्पद है. बहरहाल राजस्थान बोर्ड ऑफ मुस्लिम वक्फ की हेराफेरियों के बाद अब राज्य विधानसभा में मदरसा बोर्ड की कारगुजारियों का काला चिट्ठा भी खुला है. जल्द ही इसका परिणाम भी सामने आएगा. ऐसी लोगों को उम्मीद हैं.

कांग्रेस राज में खरीदी गई थी यूनिफार्म

बता दे कि राजस्थान में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलात मंत्री शाले मोहम्मद ने मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों के लिए उक़्त यूनिफार्म खरीदी गई थी. इसके अन्तर्गत मदरसों के प्रत्येक छात्र को दो शर्ट तथा प्रत्येक छात्रा को दो कुर्ती, दो सलवार एवं एक दुपट्टा दिया गया था. गत वर्ष यह यूनिफार्म सीकर जिले में कथित रूप से संचालित मदरसों में भी वितरित की गई थी लेकिन इनमें से बची यूनिफार्म आज भी कई मदरसों में धूल चाट रही है. लोगों की माने तो उक़्त यूनिफार्म क्वालिटी में भी बहुत हल्की है जो निर्धारित मूल्य से बहुत कम की लगती है.


मदरसों की अजीब है दास्ता !

राजस्थान में सरकारी सहायता से संचालित मदरसों की व्यवस्था की भी अजीब दास्ता है. सच पूछों तो यह न पूरी तरह से दीनी तालीम के मरकज है और न ही आधुनिक स्कूल. इसके बावजूद बड़ी संख्या में गरीब मुस्लिम बच्चे इनमें पढ़ने के लिए जाते हैं. यह दिगर बात है कि कोई इनकी अव्यवस्था पर कभी सवाल नहीं उठाता. गौरतलब है कि राजस्थान मदरसा बोर्ड भूमि - भवन स्वामित्व के क्लियर टाइटल के बिना राजनीतिक सिफारिश पर किसी को भी मदरसा संचालन की अनुमति दे देता है जबकि शिक्षा विभाग बिना पट्टे भूमि भवन में स्कूल अथवा कॉलेज संचालन की मान्यता नहीं देता है. इस पर एक बानगी यह भी है कि मदरसे की मान्यता केवल हिन्दी माध्यम में प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक स्तर पर ही दी जाती है, जिनमें अध्ययन अध्यापन के लिए ऑल सब्जेक्ट पढ़ाने हेतु दो से चार शिक्षा अनुदेशकों की नियुक्ति दी जाती है. नतीजतन मदरसों में पढ़ने वाले बच्चे अव्वल तो कक्षा 9 में पहुंचते - पहुंचते अन्य विद्यार्थियों के मुकाबले शैक्षिक स्तर पर पिछड़ जाते है या फिर स्कूल का द्वार तक नहीं देख पाते है.