Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

Responsive Advertisement

युवाओं के आइकॉन हनुमान बेनीवाल - बाल मुकुंद जोशी Hanuman Beniwal, the youth icon



 दिग्गज जाट नेताओं की खान रहे मारवाड़ की धरती से उदय हुए हनुमान बेनीवाल आज युवाओं के आइकॉन बन चुके हैं. करीब दो दशक की सियासत में बेनीवाल ने अपनी अहमियत देशभर में बना ली है. हर सूरत में जीत की चौखट पर चढ़ने वाले आक्रामक जाट नेता ने समयानुसार  अपनी भी चौसर बिछाते रहे हैं. भले ही उनके विरोधी इसको अवसरवाद की संज्ञा देते रहे हो.


  बेनीवाल की अब तक की राजनीतिक पारी

गुजरे जमाने के नागौर के धुरंधर नेता स्व. नाथूराम मिर्धा की तर्ज वाली रही है. सच कहे तो 'बाबा' वाले अंदाज में अपने आप को बेनीवाल ने नागौर ही नहीं अपितु प्रदेश की राजनीति में फिट कर लिया है. जाहिर है बेनीवाल के मज़बूत वजूद के चलते प्रदेश के कई जाट नेताओं को अपने अस्तित्व का खतरा महसूस हुआ है. खासकर मारवाड़ और शेखावाटी के जाट नेताओं को बेनीवाल की बेलगाम दौड़ बिल्कुल रास नहीं आई है. तभी तो हाल ही में हुए उपचुनाव में सभी दलों के जाट नेताओं ने घेर कर उनकी अजय पारी का खात्म किया है.


 वर्ष -2008 में राजस्थान विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष का चुनाव जीतने के बाद इस लड़ाके ने सियासत के दंगल में पैर जमाना शुरू किया. संघर्ष की राजनीति के पुरोधा भाजपा में पैर जमाते कि इसके पहले ही संघ के एक बड़े पदाधिकारी की कूटनीति के वो शिकार हो गए लेकिन राजनीति के मैदान के इस खिलाड़ी ने उठा-पटक में नागौर से पहले भाजपा के सहयोग से संसद में दस्तक दी और फिर इस बार कांग्रेस का साथ लेकर पार्लियामेंट पहुंच गए. इसके अलावा वे स्वयं और भाई नारायण बेनीवाल को भी विधानसभा में पहुंचाया है परंतु इस बार धर्मपत्नी कनिका को विधानसभा में नहीं ले जा पाये, जिसका अफसोस उन्हें अपने जीवन भर रहेगा.


खींवसर का उपचुनाव हारने के बाद बेनीवाल अपने राजनीतिक भविष्य की योजनाओं को लेकर काफी गंभीर भी है और सजग भी. सुनहरे अवसर की तलाश में लगे बेनीवाल के हाल ही में आए बयानों से साफ जाहिर होता है कि वो अब नया खेल खेलने में जुट गये है.